Jatin-Lalit
Ghar Aaja Pardesi

हो कोयल कुहके हुक उठाये
यादों की बन्दूक चलाये
बागों में झूलूं के
मौसम वापस आये रे
घर आजा परदेसी
तेरा देस बुलाये रे

इस गाँव की अनपढ़ मिटटी
पढ़ नहीं सकती तेरी चिट्ठी
यह मिटटी तू आकर चूमे तो
इस धरती का दिल झूम
माना तेरे हैं कुछ सपने पर
हम तो हैं तेरे अपने
भूलनेवाले हमको
तेरी याद सताए रे
घर आजा परदेसी
तेरा देस बुलाये रे

पनघट पे आई मटियारे
छम छम पायल की झंकारें
खेतों में लहराई सरसों
कल परसों में बीते बरसों
आज ही आजा गाता हँसता
तेरा रस्ता देखे रस्ता
अरे छुक छुक गाड़ी की
सिटी आवाज़ लगाए रे
घर आजा परदेसी
तेरा देस बुलाये रे
हाथ में पूजा की थाली
आई रात सुहागोंवाली
चाँद को देखूं हाथ में जादू
कड़वा छठ का व्रत में तोडून
तेरे हाथ से पिके पानी
दासी से बन जाऊं रानी
आज की रात जो मांगे
कोई वह प् जाए रे
घर आजा परदेसी
तेरा देस बुलाये रे

ओह मन मित्र
रे तेनु रब दे हवाले किता
दुनिया के दस्तूर हैं कैसे
पागल दिल मजबूर हैं कैसे
अब क्या कहना अब क्या सुनना
तेरे मेरे बीच यह रैना
खत्म हुई यह आँख मिचौली
कल जायेगी मेरी डोली
मेरी डोली मेरी अर्थी
न बन जाए रे
घर आजा परदेसी
तेरा देस बुलाये रे