Jagjit Singh
Kabhi Ghuncha Kabhi Shola
कभी ग़ुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह
कभी ग़ुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह
कभी ग़ुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह
मेरे महबूब, मेरे प्यार को इल्ज़ाम ना दे
मेरे महबूब, मेरे प्यार को इल्ज़ाम ना दे
हिज्र में ईद मनाई है मोहर्रम की तरह
कभी ग़ुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह
मैंने ख़ुशबू की तरह तुझ को किया है महसूस
मैंने ख़ुशबू की तरह तुझ को किया है महसूस
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह
कभी ग़ुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह
कैसे हमदर्द हो तुम? कैसी मसीहाई है?
कैसे हमदर्द हो तुम? कैसी मसीहाई है?
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मरहम की तरह
कभी ग़ुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह
कभी ग़ुंचा, कभी शोला, कभी शबनम की तरह